Monday, 11 November 2024

शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी भक्तिकाल (अध्यात्म) के संस्थापक एवं समाज सुधारक ।

 शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी भक्तिकाल के संस्थापक (अध्यात्म) एवं समाज सुधारक ।

शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी भक्तिकाल के संस्थापक
शिरोमणि सतगुरु रविदास जी महाराज भक्तिकाल के संस्थापक समाज सुधारक 


 शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी महान समाज सुधारक और भक्तिकाल के संस्थापक थे । गुरु जी ने जीवन में अध्यात्म की आवश्यकता पर जोर दिया है और बताया है कि किस प्रकार आप अपने सामाजिक जीवन में  अध्यात्म को अपनाकर  आंतरिक शांति और जीवन के उच्च मूल्य को प्राप्त कर सकते हैं । गुरु रविदास जी ने सामाजिक असमानता और जातिवाद जैसी समस्याओं के खिलाफ आवाज उठाई और समाज में प्रेम, समानता और मानवता का संदेश फैलाया। उनके उपदेश आज भी लाखों लोगों के जीवन को प्रेरणा प्रदान करते हैं। 

सतगुरु रविदास महाराज जी ने एक ऐसे विश्व की कल्पना कीजहां पर सभी को पेट भर खाना मिल सकेपहनने के लिए कपड़ा और रहने के लिए घर मिल सके । जहां सभी बराबर हों :-

 

"ऐसा चाहूँ राज मैं जहां मिलै सबन को अन्न ।
छोट बड़ो सभ सम बसेंरविदास रहै प्रसन्न । ।"

भक्तिकाल के संस्थापक एवं शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी के जीवन परिचय एवं कृतित्व पर अनेक आधुनिक लेखकों ने अपनी कलम चलाई, आप जी के जीवन से संबंधित तथ्य एकत्रित किए और सभी पुस्तकों को पढ़ा, अध्ययन किया करने के बाद यह लेख लिखा है । इस लेख में गुरु जी के जन्म, जन्मस्थान, माता-पिता एवं अन्य घटनाओं का उल्लेख न केवल गहन अध्ययन और शोध के बाद किया है बल्कि इतिहास की तिथियों को भी ध्यान में रखा है । शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी के जीवन परिचय लेख में गुरु जी के प्रति चमत्कारी घटनाओं का आद्यतमिक और सामाजिक विचरों को सहेजने की कोशिश है

 मध्यकाल का सत्ता वर्ग एवं उच्च वर्ग नहीं चाहता था कि जाति भेदभाव को समाप्त कर सभी को समानता का अधिकार मिले। यही कारण था कि सद्गुरु रविदास महाराज जी को समाज के उच्च वर्ग के साथ समय-समय पर लोहा लेना पड़ा। शंख बजाकर, जनेऊ धारण कर, मस्तिष्क पर तिलक लगाकर, पण्डितों वाला पहरावा पहनकर, आप जी ने यह बताया कि प्रत्येक व्यक्ति मनचाहा पहरावा पहन सकता है।

 

गंगा में स्नान कर यह प्रमाणित किया कि इसका जल कभी किसी के स्नान करने से अपवित्र नहीं होता, चाहे वह किसी भी जाति से हो ।

 

परंपरावादी पूजा-साधनों एवं पूजा-सामग्री का वैज्ञानिक ढंग से खंडन कर सच्ची पूजा का नया सिद्धांत प्रस्तुत किया :- कहै रविदासु नामु तेरो आरती सतिनामु है हरि भोग तुहारे । इन सभी प्रमाणित सच्चाइयों के कारण आखिर सभी को गुरु जी के समक्ष झुकना पड़ा।

 

रविदासु चमारु उसतति करे हरि कीरति निमख इक गाइ |

प्रतित जाति उतमु भइया चारि वरन पए पगि आइ ।।

 

सद्गुरु रविदास महाराज जी एक महान वैज्ञानिक एवं क्रांतिकारी थे । आप जी की वाणी का एक-एक अक्षर तर्कयुक्त बिम्बों एवं सटीक प्रतीकों को दर्शाता है। रुढ़िवादिता एवं कर्मकांडी सामग्री का खण्डन कर आप जी ने समाज को ऐसे नए सिद्धांत दिए हैं, जिनको कभी भी झुठलाया नहीं जा सकता। आप जी की विचारधारा आज भी प्रासंगिक है। बड़े-बड़े राजा-महाराजा, शाही घराने की रानियाँ और सभी वर्णों-धर्मों के लोगों को आप जी की सोच के समक्ष नतमस्तक होना पड़ा। सद्गुरु रविदास महाराज जी की महानता का गुणगान आप जी के समकालीन संत महापुरुषों और बाद के महापुरुषों ने भी अपनी वाणी में किया है।

सद्गुरु रविदास महाराज जी के समकालीन भक्तिकाल के महान संत सतगुरु कबीर महाराज जी ने आप जी को महान संत एवं ऋषि कहा है:-

 

साधन में रविदास संत हैं।

सुपच ऋषि सो मानया ।

हिन्दु तुर्क दुई दीन बने हैं

कुछ नहीं पहचानिया । ।

 

आप जी के समकालीन संत पीपा जी ने सद्गुरु रविदास जी की विलक्षण प्रतिभा का वर्णन इस प्रकार किया है :

जे कलि रैदास कबीर न होते

ते लोक वेद अरु कलजुग

मिलि कर भगति रसातल देते ।

 

संत धन्ना जी ने गुरु जी को महान संत बताते हुए कहा है कि आप ने माया का त्याग कर प्रभु के दर्शन किए :-

 

रविदास दुवंता ढोर नीति

तिन्हि तियागी माइआ

परगटु होआ साधसंगि

हरि दरसनु पाइआ । ।

 

संत गोसांई दास जी लिखते हैं कि चमड़े का कार्य करने वाले सद्गुरु रविदास जी ने प्रभु-भक्ति करके अमर-पद प्राप्त कर लिया है :-

 

ढोर भरित दुरिगंध ऊठित है, मुख दापति लैति सवासा ।

ताहि तुचा लै पनिहां गांठे, भगति भयो रविदासा ।।

 

संत अनंतदास जी ने गुरु रविदास जी को नारद का रूप और परमात्मा के मसीहा कहा है :-

 

अबरु येक रैदास चमारा,जानि नारद लीनो ओतारा

सूद्र कहो ते आवे लाजा,दरशनि कारनि तलफै राजा ।

पण्डित मरम न जानै कोई, विशन समान ओतरै दोई।।

 

संत एकनाथ जी ने सद्गुरु रविदास जी की भक्ति के महत्त्व को दर्शाते हुए लिखा है :-

 

रोहिदास चमार सब कुछ जाने ।

कठोरे गंगा देखा । ।

 

 

भाई गुरदास जी रचित 'दसवीं वार' में गुरु रविदास की महिमा एक भक्त के रूप में की है :-

 

भगतु भगतु जगि वजिया

चहूँ चक्कां दे विचि चमिरेटा ।

पाणा गंढै राह विच कुला

धर्म ढोइ ढोर समेटा । ।

 

संत कवयित्री मीरा जी ने अपना सर्वस्व सद्गुरु रविदास को ही कहा

 

नहि मैं पीहर सासरे, नहीं पिया जीरी साथ,

मीरा ने गोबिन्द मिलिया जी,गुरु मिलिया रैदास । ।

 

संत तुकाराम जी गुरु रविदास जी को ही अपने सगे-संबंधी मानते

लिखते हैं :-

 

नागाजन मित नरहरि सुनार,

रविदास कबीर सगे मेरे ।।

 

संत कर्मदास जी ने लिखा है कि जो भी गुरु जी के चरणों का ध्यान करता है, वह स्वयं भी तर जाता है और दोनों कुलों का भी उद्धार कर देता है :-

 

समंत्रम् रविदास वचनं

कोटि दोष विनाशं ।

रविदास चरणं ध्यान धरणं

कुल समूह उद्धारणम् ।

 

इस प्रकार अनेक महान संतों, विद्वानों एवं महापुरुषों ने सद्गुरु रविदास महाराज जी की शोभा के गीत गाए । यही कारण है कि गुरु अर्जुन देव जी ने आप जी को दुनिया के ठाकुर, गुरुओं के गुरु और ऊँचों के ऊँच कहा है : -

 

भलो कबीर दासु दासन को

ऊतमु सैनु जनु नाई । ।

ऊच ते ऊच नामदेउ समदरसी

रविदास ठाकुर बणि आई ।

 

गुरु प्यारी साध संगत जी! इस ठाकुर की महिमा अकथ है। विश्व का कोई भी कोश महाराज जी की महानता को अपने शब्दों के जाल में बांध नहीं सकता। आप जी की पवित्रता, महानता एवं प्रासंगिकता तो समुद्र की लहरों का ऐसा प्रवाह है, जिसे निरंतर अपने अलौकिक दृश्य से सभी को आकर्षित करना हैं, शाश्वत आनंद प्रदान करना है

सतगुरु रविदास महाराज जी के महान जीवन-परिचय को लिखने के लिए विभिन्न लेखकों, जिनकी पुस्तकों के विषयवस्तु सतगुरु रविदास महाराज जी के महान जीवन-परिचय के ज्ञान को समृद्ध किया है ।

पाठक अपने सुझाव दे सकते है ।  


Sunday, 18 August 2024

शिरोमणि सतगुरु गुरु रविदास महाराज जी जीवन दर्शन

शिरोमणि जगतगुरु सतगुरु रविदास जी महाराज: सच्चाई, समानता और मानवता के प्रतीक


Shriomani Guru Ravidas Ji Maharaj

शिरोमणि सतगुरु रविदास जी महाराज

प्रस्तावना 

रुहनीयत के मालिक, उस निराकार परम पिता की भक्ति करने वाले, अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जा कर भूलो को राह दिखाने वाले। अपनी अनुकंपा से पत्थरों को तराने वाले अपनी दया से इंसान तो क्या जानवरों को भी प्यार करने वाले गरीबों के मसीहाशांति के अग्र दूतदया के सागर।  मेरे कुल गुरुपरम पूजनीय परम परम वंदनीय निरंतर स्मरणीय, ह्रदय सम्राट   
"शिरोमणि सदगुरु रविदास जी महाराज"

सदगुरु रविदास जी महाराज, जिन्हें शिरोमणि सदगुरु के रूप में सम्मानित किया जाता है, 13वीं शताब्दी के एक महान संत, कवि, और समाज सुधारक थे। उनका जीवन और उनकी शिक्षाएं आज भी हमें सच्चाई, समानता, और मानवता की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। उनके उपदेशों ने समाज में एक नई जागरूकता और बदलाव का सूत्रपात किया, जिसने हजारों वर्षों से चली आ रही सामाजिक असमानताओं और भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत आवाज उठाई।

सद्गुरु रविदास महाराज जी ने एक ऐसे विश्व की कल्पना कीजहां पर सभी को पेट भर खाना मिल सकेपहनने के लिए कपड़ा और रहने के लिए घर मिल सके। जहां सभी बराबर हों :-

ऐसा चाहूँ राज मैं जहां मिलै सबन को अन्न । छोट बड़ो सभ सम बसें, रविदास रहै प्रसन्न । ।


सदगुरु रविदास जी महाराज का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन, वर्ष 1377 ईस्वी (1433 विक्रमी) में उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के सीर गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। 

उनके पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) था। उनका जन्म एक ऐसे समय में हुआ था । 

जब समाज में जातिवाद और भेदभाव का बोलबाला था। उनका परिवार चर्मकार जाति से था, जिसे उस समय समाज के निम्न वर्ग में माना जाता था।

सदगुरु रविदास जी महाराज ने बचपन से ही गरीबी, असमानता और अन्याय को देखा। हालांकि, इन सबके बावजूद, उन्होंने समाज में व्याप्त असमानताओं के खिलाफ संघर्ष करने का निश्चय किया । 

सदगुरु जी ने बचपन से ही धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में रुचि रखते थे और उनका अधिकतर समय धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में व्यतीत होता था । 

सदगुरु रविदास जी संत परंपरा और भक्ति मार्ग के जन्मदाता थे । इसलिए ही सद्गुरु रविदास महाराज जी को शिरोमणि गुरु रविदास महाराज कहा गया है । सदगुरु रविदास जी महाराज ने सहज मार्ग द्वारा प्रभु भक्ति की प्रेरणा दी । बाहरी कर्मकांडों और सांसारिक पूजा सामग्री का खंडन किया । उन्होंने अपनी पावन पवित्र वाणी में लिखा है: -

सतिजुगि सतु तेता जगी दुआपरि पूजाचार । तीनौ जुग तीनौ दिड़े कलि केवल नाम अधार ॥१ ॥

सतगुरु रविदास जी महाराज मानवता को पावन उपदेश देते हैं कि प्रभु के सिर्फ नाम सिमरन से ही जीव का जन्म - मरण के चक्र से छुटकारा हो सकता है  जो बहुत ही सरल और सहज मार्ग है ।  


संक्षिप्त जीवन परिचय सद्गुरु रविदास महाराज जी

 

नाम                        

सदगुरु रविदास महाराज जी

माता का नाम

कलसाँ

पिता का नाम

संतोख दास

जन्म स्थान

सीर गोवर्धनपुरनज़दीक मंडुआडीह वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

 जन्म तिथि

चौदह सौ तैंतीस (विक्रमी) माघ सुदी पूर्णिमा 1377 ई.

 दिन

रविवार

ब्रहमलीन वर्ष

1527 ई.

ब्रह्मलीन स्थल

चितौड़गढ़

सदगुरु रविदास जी के वंश में से ही उनके पड़पौत्र संत कर्मदास जी, जो कि गुरु गोबिंद सिंह जी के पांच प्यारों में से थे और श्री धर्मदास जी के समकालीन थे, ने प्रस्तुत दोहा सद्गुरु रविदास महाराज जी के जन्म परिणाम स्वरूप प्रस्तुत किया है :-

 
चौदह सौ तैंतीस की माघ सुदी पंदरास ।
दुखियों के कल्यान हित, प्रगटे श्री रविदास । ।

 

आध्यात्मिक यात्रा और धर्म से जुड़ाव

सद्गुरु रविदास महाराज जी महान युगपुरुष हुए हैं। आप जी ने सुदीर्घ और स्वस्थ जीवन बिताया है। 151 वर्ष की इस लम्बी आयु में आप जी ने भारतीय समाज को नई दिशा प्रदान की। 

अपने मुखारबिंद से ऐसे वचनों की वर्षा की जिससे समाज में फैले ऊँच-नीच, जाति भेद-भाव और धर्म के प्रति अनेक प्रकार की शंकाए समाप्त हो गईं। सभी के हृदय में ज्ञान का दीया जलने लगा और अज्ञानता का अन्धकार मिट गया। 

आप जी ने बहुत सी वाणी का उच्चारण किया जिसमें से चालीस शबद और एक श्लोक श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की माला का मोती बन गए । आज भी उन मोतियों को चुग कर अनेक काग हँस बन रहे हैं। 

लिखित वाणी के साथ-साथ सद्‌गुरु रविदास महाराज जी ने स्थान-स्थान पर जाकर लोगों को धर्म, एकता और भाईचारे का संदेश दिया।

इस तरह सद्‌गुरु रविदास जी ने भी अनेक उदासियां की और जहाँ भी आप जी के चरण पड़े वहाँ पर एक यादगार बन गई। डॉ. पदम् गुरचरण सिंह जी ने आप जी की यात्राओं के बारे में कहा है कि मथुरा, वृंदावन, प्रयाग, हरिद्वार और कुरुक्षेत्र आदि की यात्रा सद्गुरु रविदास जी ने की थी ।

संतघाट गुरुद्वारा :- यह वह प्रसिद्ध स्थान है जहाँ सद्‌गुरु रविदास जी की पंजाब यात्रा के दौरान श्री गुरु नानक देव जी से भेंट हुई थी। आप जी ने सत्संग किया, प्रवचन किए और श्री गुरु नानक देव जी के साथ धार्मिक जागरण संबंधी और सामाजिक कुरीतियों का खण्डन करने के लिए एक गोष्ठी भी की थी। अनेक संत महापुरुष यहाँ मिल कर बैठे थे।

पण्डित बख्शी दास ने 'रविदास रामायण' में उन धार्मिक स्थानों का वर्णन किया है, जहाँ पर गुरु रविदास जी गए थे। वे स्थान हैं:- प्रयाग, त्रिवेणी, गोदावरी, हरिद्वार, सुल्तानपुर, पंघाट। पण्डित बख्शी राम के अनुसार महापंघाट वह स्थान है जहाँ मीरा जी को रविदास महाराज पुनः मिले थे और आप ने समूचे देश के भ्रमण की इच्छा प्रकट की थी :-

विवाह और पारिवारिक जीवन

सद्गुरु रविदास महाराज जी की लगन जब प्रभु-नाम के साथ इतनी बढ़ गई कि आप दुनियादारी से बेखबर रहने लगे। तब माता-पिता ने सोचा कि अब इसका विवाह कर दिया जाए। जब इस पर गृहस्थी का बोझ पड़ेगा तो यह बंधन में बंध कर काम धंधे में लग जाएगा।

श्री राम चरण कुरील लिखते हैं कि: - 

"श्री गुरु रविदास जी ने गरीबों की सेवा में घर को लुटा दिया। किसी भी गरीब को नंगे पांव चलते नहीं देख सकते थे। उसे जूते पहना कर ही जाने देते थे।" 

मेहनत से कमाया हुआ धन यूं ही लुटता देख कर पिता संतोख दास जी दुःखी रहने लगे। श्री संतोख दास जी ने अपने ससुर श्री बारु राम जी को संदेश भेजा कि वह अपने दोहते के लिये एक सुंदर कन्या की खोज करे। श्री बारू राम भी अपने क्षेत्र के माने हुए व्यक्ति थे। उन्होंने गंगा पार के एक गांव मिर्जापुर के एक अच्छे व्यक्ति की सपुत्री कुमारी लोना जो श्री गुरु रविदास जी की हमउम्र थी, से शादी करवा दी ।

पृथ्वी सिंह आज़ाद तथा अन्य कई पुस्तकों में सद्‌गुरु जी की पत्नी का नाम "लोना देवी" ही लिखा है, जब कि भाई जोध सिंह ने "भगवन्ती माना" है। असल बात तो यह है कि लोना देवी उन के मायके परिवार में नाम था परंतु शादी के पश्चात् ससुराल में उनका नाम भागिन देवी रखा गया था।

सद्‌गुरु रविदास जी का विवाह पिता संतोख दास जी ने इस कारण किया ताकि वह उनके व्यापार को संभाल सकें। परंतु सद्‌गुरु रविदास जी का मिशन तो कुछ और ही था।

सद्‌गुरु रविदास महाराज जी के विवाह की प्रमाणित जानकारी न मिलने के कारण आप जी की संतान के बारे में भी कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता और न ही कहीं इसका उल्लेख ही मिलता है। यह तो अवश्य माना जाता है कि सद्‌गुरु रविदास महाराज जी गृहस्थी थे। 

आप जी की संतान का उल्लेख करते हुए आचार्य पृथ्वी सिंह आज़ाद ने अपनी रचना "गुरु रविदास" के पृष्ठ संख्या 16 पर बताया है कि "रविदास पुराण" के अनुसार आप जी का एक बेटा था, जिसका नाम विजय दास था।

महंत जसवंत सिंह के अनुसार सद्‌गुरु रविदास जी का एक बेटा और एक बेटी थी। बेटे का नाम संत दास और बेटी का नाम संत कौर बताया है। बाबा सति दरबारी अपनी रचना 'रविदास परगास में एक पुत्र होने की बात करते हैं। लेकिन खेद की बात है कि इन सभी का कोई भी प्रमाण नहीं मिलता ।

अगर सद्‌गुरु रविदास जी की कोई संतान होती तो कहीं न कहीं समकालीन इतिहास या उसके बाद में आप जी के साथ-साथ आपकी संतान का भी अवश्य उल्लेख होता। 

श्री गुरु रविदास जी ने अपने समाज को ही अपनी संतान माना है। सभी प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सद्‌गुरु रविदास महाराज जी ने गृहस्थ जीवन तो अवश्य अपनाया था लेकिन संतान कोई न थी।

सद्‌गुरु रविदास महाराज जी ने गृहस्थ जीवन अपना कर यह सिद्ध कर दिया कि व्यक्ति गृहस्थ जीवन में भी सांसारिक पदार्थों से निर्लिप्त होकर परमात्मा को प्राप्त कर सकता है ।

सद्गुरु रविदास जी महाराज के उपदेश और लेखनी

सदगुरु रविदास जी महाराज ने अपने जीवन के दौरान कई लेख और कविताएं रचीं, जिनमें उन्होंने समाज के विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए । 

उनके उपदेशों में धर्म, भक्ति, और सेवा के महत्व को प्रमुखता दी गई है। उन्होंने अपने लेखों में जातिवाद, भेदभाव, और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई । उनके लेख आज भी समाज में समानता और न्याय के संदेश को फैलाते हैं।

श्री गुरु ग्रंथ साहिब में सद्गुरु जी के चालीस शबद और एक श्लोक शामिल हैं, जो उनकी गहरी आध्यात्मिकता और समाज सेवा के प्रति उनके समर्पण को दर्शाते हैं। 

इन रचनाओं में भगवान के नाम का जप करने, सच्चे गुरु की प्राप्ति, और संतों के उपदेशों का अनुसरण करने का महत्व समझाया गया है। 

उनकी लेखनी ने समाज के दलित और उत्पीड़ित वर्गों को नई दिशा दी और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया ।

आज सदगुरु रविदास महाराज जी के करोड़ों अनुयायी दुनिया भर के देशों मे रहते हैं, उन्होंने सदगुरु रविदास महाराज जी की पावन पवित्र वाणी पर खोज करके सभी ग्रंथों से इकट्ठा कर अमृतवाणी ग्रंथ की स्थापना की है । 

आज विश्व भर में सदगुरु रविदास महाराज जी के करोड़ों अनुयायी (संगत) है । जो सदगुरु रविदास महाराज जी की अमृतवाणी को जन जन तक पहुँचा रहे है जिसमें सद्गुरु रविदास महाराज जी के सरल और सहज भक्ति मार्ग, नाम भक्ति, संत परंपरा, बाहरी कर्मकांडों का खंडन, सामाजिक समरसता  की बात की है । 

संघर्ष और समाज सेवा में योगदान

सद्गुरु रविदास महाराज का जिस मध्यकाल में आविर्भाव हुआ, उस समय देश और समाज विषम परिस्थितियों में से गुज़र रहा था। देश में मुस्लिम शासन होने के कारण धार्मिक कट्टरपंथता ज़ोरों पर थी। सत्ता के ज़ोर पर वैभव का प्रलोभन दिखाकर, धर्म परिवर्तन करवाने का अभियान तेज़ी पर था। 

दूसरी ओर हिंदुओं में ऊँच नीच, जाति-पाति, छुआछूत की बीमारी पूर्ण शिखर पर थी। अनंत कुरीतियों व कर्मकांडों में उलझा हिंदु धर्म खंड- विखंड होते हुए भी देवी-देवताओं व भगवान के अवतारों के चक्रव्यूह में घिरा हुआ था। 

दोनों ही धर्मावलम्बी समाज के मध्यवर्गीय, निम्न व छोटी जाति के लोगों के उत्पीड़न और शोषण में संलग्न थे ।

उस समय धर्म केवल ऊँचे लोगों की तिजौरी में ही बंद था। अछूतों के लिए शिक्षा के द्वार बंद थे। वेद-शास्त्रों को पढ़ने और सुनने पर भी पाबंदी थी। 

ऐसी स्थिति में सद्गुरु रविदास महाराज जी पहले ऐसे संत हुए जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक शक्ति से ऐसी क्रांति उत्पन्न की जिससे राजमहलों में जाने वाली पगडंडियां गरीबों की झोंपड़ियों की ओर मुड़ गईं। 

इसी क्रांति से प्रभावित शाही महल की महारानी मीराबाई और झालांबाई ने सद्गुरु रविदास जी को अपना गुरु बना लिया। 

महाराज सद्गुरु रविदास जी के जन्म से पहले किसी भी महापुरुष ने ऐसा कर्म नहीं किया था कि वह समाज के उच्च वर्ग दद्वारा शोषित निम्न जाति के दलितों पर हो रहे अन्याय का विरोध कर सकने की क्षमता रख सके। गुरु रविदास जी ने निर्भय होकर धर्मांन्ध लोगों से कहा :

 जन्म जात मत पूछिए का जात अरु पात।

रविदास पूत सब प्रभ के कोउ नहीं जात कुजात।

 

Thursday, 15 August 2024

भारतीय मूल के लोगों द्वारा ऑस्ट्रिया विएना में भारतीय स्वतंत्रता दिवस पर क्रिकेट अकादमी ऑस्ट्रिया द्वारा 20वें T10 का आयोजन

क्रिकेट अकादमी ऑस्ट्रिया (CAA) के प्रतिष्ठित अध्यक्ष भारतीय मूल के श्री लखवीर एस. हीरा 


विएना, ऑस्ट्रिया क्रिकेट अकादमी ऑस्ट्रिया (CAA) के प्रतिष्ठित अध्यक्ष भारतीय मूल के श्री लखवीर एस. हीरा और उनकी पत्नी श्रीमती अंजुमन हीरा के नेतृत्व में 20वें T10 के आयोजन की घोषणा भारतीय स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में की गई है । यह आयोजन ऑस्ट्रिया में भारतीय समुदाय को क्रिकेट के प्रति उनके साझा शौक के माध्यम से एकत्रित करने वाला महत्वपूर्ण कार्यक्रम बन गया है । इस साल के समारोह, जो 10 अगस्त और 15 अगस्त को लोअर ऑस्ट्रिया के सुरम्य सीबर्न क्रिकेट ग्राउंड (पता: Schlossstraße 24, 2111 Seebarn, Lower Austria) में आयोजित किया जाएगा ।

अध्यक्ष लखवीर एस. हीरा, महासचिव श्री गौरव कौशल, और कोषाध्यक्ष संतोष अला के नेतृत्व में, सीएए की टीम इस 20वीं वार्षिक वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए प्रतिबद्ध है ।

इस समारोह में कई प्रमुख अतिथियों की उपस्थिति होगी, जिनमें मुख्य अतिथि H.E. Mr. Shambu S. Kumaran, ऑस्ट्रिया में भारत के राजदूत शामिल हैं । इस समारोह में विशिष्ट अतिथि Mr. Arun Kanth Manoharan, भारतीय दूतावास के अधिकारी, और विशेष अतिथि Mr. Alexander Reischer, Harmansdorf  के मेयर की उपस्थिति भी होगी । इसके अलावा, विएना के भारतीय दूतावास के अन्य प्रतिष्ठित अधिकारी भी इस महत्वपूर्ण समारोह को समर्पित करने के लिए उपस्थित होंगे ।

15 अगस्त को, भारतीय स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, ऑस्ट्रिया में भारत के राजदूत S. Kumaran, दोपहर 12:00 बजे झंडा फहराने की रस्म की अगुवाई करेंगे । इस दिन की गतिविधियों का समापन बहुप्रतीक्षित स्वतंत्रता दिवस कप के फाइनल के साथ होगा, जिसके बाद पुरस्कार वितरण समारोह होगा । फाइनल मैच शाम 5:00 बजे निर्धारित है, और पुरस्कार वितरण समारोह लगभग 6:00 बजे होगा ।

श्री लखवीर एस. हीरा ने फोन पर बताया की किस तरह 2005 में क्रिकेट प्रेमियों के एक समूह द्वारा स्थापित क्रिकेट अकादमी ऑस्ट्रिया एक छोटे समूह से एक बड़े वार्षिक समारोह में बदल गई है ।

उन्होंने आगे बताया की यह सफलता ऑस्ट्रिया में भारतीय दूतावास और कई प्रमुख भारतीय मूल के उद्यमियों जैसे श्री जयरथ के अटूट समर्थन के कारण संभव हो पाई है । वर्षों के दौरान, यह समारोह भारतीय समुदाय के व्यापक वर्गों से समर्थन प्राप्त करता आ रहा है, जैसे कि श्री गुरदीत बाजवा, श्री प्रदीप कुमार, श्री विपिन कटारिया, श्री अग्रवाल, श्री संजय सहगल, श्री पियूष अग्रवाल, सुश्री सहनी, श्री दीन दयाल, श्री राम लुभाया, श्री जसवीर कौलधर, श्री निर्मल लख्खा, श्री केशव ढाडा और श्री सतनाम सनोट्रा जैसे उद्योगपतियों का योगदान इस कार्यक्रम को एक अलग ही तरह प्यार और महोबत्त के कार्यक्रम में बदल दिया है जो भारतीय प्रवासी समुदाय और उनकी विरासत के गहरे रिश्तों को दर्शाता है ।

क्रिकेट के अलावा, इस समारोह में समुदाय को शामिल करने के लिए कई प्रकार की गतिविधियाँ भी की जाती है । 15 अगस्त को विशेष रूप से महिलाओं के लिए क्रिकेट कार्यशाला का आयोजन किया जाता है, जिसमें महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को अपने हुनर दिखाने का मौका मिलता है । बच्चे चैरिटी बुक सेल में भाग लेते है, बच्चों और जोड़ों के लिए कई अन्य मजेदार खेलों का आयोजन भी होता है ।

वास्तव में, पूरे समुदाय को एकजुट करते हुए, यह कार्यक्रम जहां विदेशों में भारतीय समुदाय को जोड़ता है वहीं यह हम जैसे लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत है  कि किस प्रकार हम अपने स्वतंत्रता दिवस को बेहतर तरीके से मना सकते हैं । अंत में खिलाड़ियों और दर्शकों को दोपहर का खाना, मिठाइयाँ और ताजगी भरे पदार्थ परोसे जाते हैं और इस तरह से एक खुशहाल और समावेशी कार्यक्रम का समापन होता है ।

क्रिकेट अकादमी ऑस्ट्रिया (CAA) के प्रतिष्ठित अध्यक्ष श्री लखवीर एस. हीरा और श्री केशव ढाडा, अन्तराष्ट्रिय चेयरमैन ग्लोबल रविदासिया वेल्फेर फाउंडेशन यूरोप का इस जानकारी के लिय बहुत बहुत धन्यवाद ।

स कार्यक्रम के बारे में अधिक जानकारी के लिए ईमेल lakhvirhira12@gmail.com पर लिखें और विज़िट करें फेस्बूक पेज https://www.facebook.com/CricketAcademyAustria

  
Sher Singh Ravidassia
President 
Global Ravidassia Welfare Organization, India

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शिरोमणि सतगुरु गुरु रविदास महाराज जी जीवन दर्शन

शिरोमणि जगतगुरु सतगुरु रविदास जी महाराज: सच्चाई, समानता और मानवता के प्रतीक शिरोमणि सतगुरु रविदास जी महाराज प्रस्तावना  रुहनीयत के मालिक , उ...

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