Monday, 11 November 2024

शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी भक्तिकाल (अध्यात्म) के संस्थापक एवं समाज सुधारक ।

 शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी भक्तिकाल के संस्थापक (अध्यात्म) एवं समाज सुधारक ।

शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी भक्तिकाल के संस्थापक
शिरोमणि सतगुरु रविदास जी महाराज भक्तिकाल के संस्थापक समाज सुधारक 


 शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी महान समाज सुधारक और भक्तिकाल के संस्थापक थे । गुरु जी ने जीवन में अध्यात्म की आवश्यकता पर जोर दिया है और बताया है कि किस प्रकार आप अपने सामाजिक जीवन में  अध्यात्म को अपनाकर  आंतरिक शांति और जीवन के उच्च मूल्य को प्राप्त कर सकते हैं । गुरु रविदास जी ने सामाजिक असमानता और जातिवाद जैसी समस्याओं के खिलाफ आवाज उठाई और समाज में प्रेम, समानता और मानवता का संदेश फैलाया। उनके उपदेश आज भी लाखों लोगों के जीवन को प्रेरणा प्रदान करते हैं। 

सतगुरु रविदास महाराज जी ने एक ऐसे विश्व की कल्पना कीजहां पर सभी को पेट भर खाना मिल सकेपहनने के लिए कपड़ा और रहने के लिए घर मिल सके । जहां सभी बराबर हों :-

 

"ऐसा चाहूँ राज मैं जहां मिलै सबन को अन्न ।
छोट बड़ो सभ सम बसेंरविदास रहै प्रसन्न । ।"

भक्तिकाल के संस्थापक एवं शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी के जीवन परिचय एवं कृतित्व पर अनेक आधुनिक लेखकों ने अपनी कलम चलाई, आप जी के जीवन से संबंधित तथ्य एकत्रित किए और सभी पुस्तकों को पढ़ा, अध्ययन किया करने के बाद यह लेख लिखा है । इस लेख में गुरु जी के जन्म, जन्मस्थान, माता-पिता एवं अन्य घटनाओं का उल्लेख न केवल गहन अध्ययन और शोध के बाद किया है बल्कि इतिहास की तिथियों को भी ध्यान में रखा है । शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी के जीवन परिचय लेख में गुरु जी के प्रति चमत्कारी घटनाओं का आद्यतमिक और सामाजिक विचरों को सहेजने की कोशिश है

 मध्यकाल का सत्ता वर्ग एवं उच्च वर्ग नहीं चाहता था कि जाति भेदभाव को समाप्त कर सभी को समानता का अधिकार मिले। यही कारण था कि सद्गुरु रविदास महाराज जी को समाज के उच्च वर्ग के साथ समय-समय पर लोहा लेना पड़ा। शंख बजाकर, जनेऊ धारण कर, मस्तिष्क पर तिलक लगाकर, पण्डितों वाला पहरावा पहनकर, आप जी ने यह बताया कि प्रत्येक व्यक्ति मनचाहा पहरावा पहन सकता है।

 

गंगा में स्नान कर यह प्रमाणित किया कि इसका जल कभी किसी के स्नान करने से अपवित्र नहीं होता, चाहे वह किसी भी जाति से हो ।

 

परंपरावादी पूजा-साधनों एवं पूजा-सामग्री का वैज्ञानिक ढंग से खंडन कर सच्ची पूजा का नया सिद्धांत प्रस्तुत किया :- कहै रविदासु नामु तेरो आरती सतिनामु है हरि भोग तुहारे । इन सभी प्रमाणित सच्चाइयों के कारण आखिर सभी को गुरु जी के समक्ष झुकना पड़ा।

 

रविदासु चमारु उसतति करे हरि कीरति निमख इक गाइ |

प्रतित जाति उतमु भइया चारि वरन पए पगि आइ ।।

 

सद्गुरु रविदास महाराज जी एक महान वैज्ञानिक एवं क्रांतिकारी थे । आप जी की वाणी का एक-एक अक्षर तर्कयुक्त बिम्बों एवं सटीक प्रतीकों को दर्शाता है। रुढ़िवादिता एवं कर्मकांडी सामग्री का खण्डन कर आप जी ने समाज को ऐसे नए सिद्धांत दिए हैं, जिनको कभी भी झुठलाया नहीं जा सकता। आप जी की विचारधारा आज भी प्रासंगिक है। बड़े-बड़े राजा-महाराजा, शाही घराने की रानियाँ और सभी वर्णों-धर्मों के लोगों को आप जी की सोच के समक्ष नतमस्तक होना पड़ा। सद्गुरु रविदास महाराज जी की महानता का गुणगान आप जी के समकालीन संत महापुरुषों और बाद के महापुरुषों ने भी अपनी वाणी में किया है।

सद्गुरु रविदास महाराज जी के समकालीन भक्तिकाल के महान संत सतगुरु कबीर महाराज जी ने आप जी को महान संत एवं ऋषि कहा है:-

 

साधन में रविदास संत हैं।

सुपच ऋषि सो मानया ।

हिन्दु तुर्क दुई दीन बने हैं

कुछ नहीं पहचानिया । ।

 

आप जी के समकालीन संत पीपा जी ने सद्गुरु रविदास जी की विलक्षण प्रतिभा का वर्णन इस प्रकार किया है :

जे कलि रैदास कबीर न होते

ते लोक वेद अरु कलजुग

मिलि कर भगति रसातल देते ।

 

संत धन्ना जी ने गुरु जी को महान संत बताते हुए कहा है कि आप ने माया का त्याग कर प्रभु के दर्शन किए :-

 

रविदास दुवंता ढोर नीति

तिन्हि तियागी माइआ

परगटु होआ साधसंगि

हरि दरसनु पाइआ । ।

 

संत गोसांई दास जी लिखते हैं कि चमड़े का कार्य करने वाले सद्गुरु रविदास जी ने प्रभु-भक्ति करके अमर-पद प्राप्त कर लिया है :-

 

ढोर भरित दुरिगंध ऊठित है, मुख दापति लैति सवासा ।

ताहि तुचा लै पनिहां गांठे, भगति भयो रविदासा ।।

 

संत अनंतदास जी ने गुरु रविदास जी को नारद का रूप और परमात्मा के मसीहा कहा है :-

 

अबरु येक रैदास चमारा,जानि नारद लीनो ओतारा

सूद्र कहो ते आवे लाजा,दरशनि कारनि तलफै राजा ।

पण्डित मरम न जानै कोई, विशन समान ओतरै दोई।।

 

संत एकनाथ जी ने सद्गुरु रविदास जी की भक्ति के महत्त्व को दर्शाते हुए लिखा है :-

 

रोहिदास चमार सब कुछ जाने ।

कठोरे गंगा देखा । ।

 

 

भाई गुरदास जी रचित 'दसवीं वार' में गुरु रविदास की महिमा एक भक्त के रूप में की है :-

 

भगतु भगतु जगि वजिया

चहूँ चक्कां दे विचि चमिरेटा ।

पाणा गंढै राह विच कुला

धर्म ढोइ ढोर समेटा । ।

 

संत कवयित्री मीरा जी ने अपना सर्वस्व सद्गुरु रविदास को ही कहा

 

नहि मैं पीहर सासरे, नहीं पिया जीरी साथ,

मीरा ने गोबिन्द मिलिया जी,गुरु मिलिया रैदास । ।

 

संत तुकाराम जी गुरु रविदास जी को ही अपने सगे-संबंधी मानते

लिखते हैं :-

 

नागाजन मित नरहरि सुनार,

रविदास कबीर सगे मेरे ।।

 

संत कर्मदास जी ने लिखा है कि जो भी गुरु जी के चरणों का ध्यान करता है, वह स्वयं भी तर जाता है और दोनों कुलों का भी उद्धार कर देता है :-

 

समंत्रम् रविदास वचनं

कोटि दोष विनाशं ।

रविदास चरणं ध्यान धरणं

कुल समूह उद्धारणम् ।

 

इस प्रकार अनेक महान संतों, विद्वानों एवं महापुरुषों ने सद्गुरु रविदास महाराज जी की शोभा के गीत गाए । यही कारण है कि गुरु अर्जुन देव जी ने आप जी को दुनिया के ठाकुर, गुरुओं के गुरु और ऊँचों के ऊँच कहा है : -

 

भलो कबीर दासु दासन को

ऊतमु सैनु जनु नाई । ।

ऊच ते ऊच नामदेउ समदरसी

रविदास ठाकुर बणि आई ।

 

गुरु प्यारी साध संगत जी! इस ठाकुर की महिमा अकथ है। विश्व का कोई भी कोश महाराज जी की महानता को अपने शब्दों के जाल में बांध नहीं सकता। आप जी की पवित्रता, महानता एवं प्रासंगिकता तो समुद्र की लहरों का ऐसा प्रवाह है, जिसे निरंतर अपने अलौकिक दृश्य से सभी को आकर्षित करना हैं, शाश्वत आनंद प्रदान करना है

सतगुरु रविदास महाराज जी के महान जीवन-परिचय को लिखने के लिए विभिन्न लेखकों, जिनकी पुस्तकों के विषयवस्तु सतगुरु रविदास महाराज जी के महान जीवन-परिचय के ज्ञान को समृद्ध किया है ।

पाठक अपने सुझाव दे सकते है ।  


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